आचार्य प्रदीप सिंह ठुकराल की बहुप्रतीक्षित पुस्तक “आनन्दित जीवन कैसे जियें ?” रजनीश ध्यान मन्दिर, सोनीपत में विमोचन सम्पन्न
पवन सचदेवा
टेलीग्राम संवाद , सोनीपत, हरियाणा।अध्यात्मिक गगन के प्रसिद्ध गुरुओं के गुरु, ओशो रजनीश के अनुज एवं अध्यात्म-जगत के दिव्य संत स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जी ने श्री रजनीश ध्यान मंदिर, सोनीपत में आचार्य प्रदीप सिंह ठुकराल द्वारा लिखित पुस्तक “आनन्दित जीवन कैसे जियें ?” का भव्य विमोचन किया। यह अवसर आध्यात्मिक ऊर्जा, मौन की गहनता और आनंद की सुगंध से अभिभूत रहा।
विमोचन समारोह में स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा :-
“ओशो के गीत, बांसुरी बने आचार्य प्रदीप”। ओशो का जीवन और उनका दर्शन किसी सुवासित पुष्प की तरह है, जिसकी सुगंध चारों दिशाओं में फैलती जा रही है। उनकी वाणी, उनका मौन, उनकी हँसी और उनका होना—सब जीवन की धड़कन को नए ढंग से जीना सिखाता है।उन्होंने आगे कहा—“ओशो कहते हैं जीवन समस्या नहीं, उत्सव है। जब मनुष्य जागृति और प्रीति से जीता है, तब हर क्षण आनंद का स्रोत बन जाता है।
आचार्य प्रदीप जी की यह पुस्तक ‘आनन्दित जीवन कैसे जियें ?’ उसी अमृत-स्रोत की बूंदों को शब्दों में पिरोने का प्रयास है।”
स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए यह भी कहा—
“आचार्य प्रदीप जी ने ओशो को केवल पढ़ा नहीं, उन्हें साधा है। इसलिए उनके शब्द उपदेश नहीं लगते, वे ओशो की बाँसुरी से निकले गीत जैसे सहज और स्वाभाविक प्रतीत होते हैं।”
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती के अनुसार आचार्य प्रदीप की यह पुस्तक पाठक को भीतर की यात्रा पर ले जाती है, भय को स्वतंत्रता में बदल देती है, रिक्तता को पूर्णता में विलीन कर देती है, और संघर्ष को सहजता के प्रवाह में रूपांतरित कर देती है
स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी ने अंत में कहा—“यह पुस्तक उनके लिए आमंत्रण है, जो जीवन को बोझ नहीं, उत्सव की तरह जीना चाहते हैं।”

पुस्तक का सार
आचार्य प्रदीप सिंह ठुकराल की यह पुस्तक आधुनिक जीवन की भागदौड़, तनाव और रिक्तता के बीच आंतरिक आनंद, ध्यान, जागरूकता, प्रेम, संवाद और समर्पण का मार्ग खोलती है। आठ प्रेरक अध्यायों में संकलित यह पुस्तक जीवन को देखने की नई दृष्टि, सजगता की शक्ति, संबंधों की गहराई, कर्तव्य का बोध, दृढ़ निश्चय, संवाद की कला और ईश्वर के प्रति समर्पण का व्यावहारिक दर्शन प्रस्तुत करती है।
पुस्तक पाठक को यह स्मरण कराती है कि-“आनंद कोई मंज़िल नहीं, यात्रा है। और यह यात्रा भीतर से शुरू होती है।”
आचार्य प्रदीप जी कहते हैं—“धन्य हैं वे, जो जीवन में ही जान जाते हैं कि बाहरी महल सूना है और भीतर का आनंद ही जीवन की सच्ची संपदा है। जिसने खोजा—उसने पाया।”
आचार्य प्रदीप जी ने टेलीग्राम संवाद से बातचीत में कहा :-
मेरी सारी जिन्दगी में मैंने अपने सद्गुरुओं से जो सीखा है, अपने बुजुर्गों से जो सीखा है, वह कागज पर उतारा है। कैसी वाणी बोले, कैसे मधुर संबंधों में रहे, कैसे वो जो प्रभु की कृपा है उसको पहचाने कैसे, कैसे देखे इस संसार को, यह सब जो अनुभव है, इसको कागज पर उतारा है। मैं उम्मीद करता इस किताब को पढ़कर पाठक सुखी आननंदित, प्रेमल और करुणावान जीवन को जीएगें।
उनके अनुसार यह पुस्तक उन सब के लिए है :-
- जो आंतरिक शांति की तलाश में हैं
- जो जीवन को उत्सव की तरह जीना चाहते हैं
- जो ध्यान, प्रेम और जागरूकता के मार्ग पर चलना चाहते हैं
- जो संबंधों में मधुरता और जीवन में संतुलन चाहते हैं

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आचार्य प्रदीप सिंह ठुकराल
मो: 98186 74846
Author: telegramsamvad
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