स्वामी जी ने दिया व्यक्तिगत जीवन में ध्यान साधना के महत्व पर व्याख्यांन व ओशो की दृष्टि से करा उपस्थितजन का गहन मार्गदर्शन, दिए सभी जीज्ञासुओं के प्रश्नों के उतर
नए साधकों व प्रेमियों को स्वामी जी ने दी ओशो की माला दीक्षा
पवन सचदेवा
कोलकाता। ओशो प्रेमियों, संन्यासियों और शांति के जिज्ञासुओं से भरे कोलकाता के विधान नगर स्थित मेवार बैंक्वेट हाल में आज गुरूओं के गुरु ओशो के छोटे भाई एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त दिव्य संत व ध्यानगुरु स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने “व्यक्तिगत जीवन में ध्यान साधना का महत्व” विषय पर प्रेरक प्रवचन दिया। इस कार्यक्रम में शहर भर व आस पास के शहरों से सैकड़ों साधक, ध्यानप्रेमी, ओशो प्रेमी और आध्यात्मिक जिज्ञासु शामिल हुए।

स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने अपने संबोधन में बताया कि ध्यान केवल एक साधना नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। उन्होंने कहा “ध्यान व्यक्ति के भीतर संतुलन, स्वास्थ्य, शांति, प्रेम और आनंद का बीज जगाता है। यह हमें ईश्वर की खोज नहीं, बल्कि अपने भीतर की ‘भगवत्ता’ को पहचानना सिखाता है।”
जीवन में संतुलन
स्वामी जी ने कहा कि आधुनिक जीवन की भागदौड़ में इंसान या तो अतीत के बोझ में है या भविष्य की चिंता में। ध्यान उसे वर्तमान क्षण में स्थिर करता है। ध्यान से व्यक्ति की प्रतिक्रियाएँ कम होती हैं और जीवन के प्रति उत्तरदायित्व बढ़ता है। यही स्थिरता सच्चे संतुलन की जड़ है।
शारीरिक स्वास्थ्य
स्वामी जी ने कहा कि ध्यान का प्रभाव केवल मानसिक नहीं, शारीरिक स्तर पर भी गहरा होता है। स्वामी जी ने बताया कि तनाव और चिंता शरीर में विष के समान हैं, और ध्यान इन्हें समाप्त करता है। नियमित ध्यान करने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है, हृदय की गति संतुलित होती है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

मानसिक शांति
स्वामी जी ने कहा कि मानव मन विचारों की भीड़ में फँसा है और यही अशांति का कारण है। ध्यान व्यक्ति को उस मौन से परिचित कराता है जो उसके असली स्वरूप में है। उन्होंने ओशो के शब्दों में कहा “मन का स्वभाव विचार है, परंतु तुम्हारा स्वभाव मौन है।” ध्यान के अभ्यास से व्यक्ति धीरे-धीरे भीतर की स्थिरता में उतरता है और बाहरी परिस्थितियाँ उसे विचलित नहीं करतीं।

हार्दिक विकास
स्वामी जी ने बताया कि ध्यान हृदय को खोलता है और व्यक्ति में करुणा, प्रेम और सह-अस्तित्व की भावना को जगाता है। उन्होंने कहा कि सच्चा प्रेम तभी जन्म लेता है जब मन शांत और हृदय खुला हो। ध्यान व्यक्ति को दूसरों को स्वीकारना सिखाता है, जिससे संबंधों में मधुरता और जीवन में सहानुभूति आती है।
आत्मिक आनंद
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जी ने कहा कि ध्यान का परम फल आत्मिक आनंद है, जो किसी बाहरी वस्तु पर नहीं, बल्कि भीतर की अनुभूति पर आधारित है। जब अहंकार का विलय होता है, तो केवल साक्षी बचता है वहीं से अनंत शांति और आनंद प्रकट होता है।
भगवान नहीं, भगवत्ता

ओशो की दृष्टि को स्पष्ट करते हुए स्वामी जी ने कहा कि भगवान कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि चेतना की अवस्था है। “सत्य किसी मूर्ति में सीमित नहीं; वह प्रेम, करुणा और जागरूकता के रूप में हमारे भीतर ही छिपा है।” जब व्यक्ति ध्यान करता है, तो उसके भीतर वही दैवीयता, भगवत्ता, जागने लगती है। यही ओशो का सन्देश है, ईश्वर को खोजो नहीं, भीतर की ईश्वरीयता को प्रकट करो।

“धर्म नहीं, धार्मिकता”
स्वामी जी ने ओशो के इस प्रसिद्ध कथन का अर्थ समझाते हुए कहा कि सच्चा धर्म किसी संस्था या परंपरा में नहीं, बल्कि व्यक्ति की जागरूकता में है। “धर्म तुम्हें बाँधता है, धार्मिकता तुम्हें मुक्त करती है।” धार्मिकता तब जन्म लेती है जब व्यक्ति सचेत, प्रेमपूर्ण और करुणामय होता है। यह बाहरी नियमों से नहीं, बल्कि भीतर की आत्मानुभूति से उपजती है।


कार्यक्रम का समापन
प्रवचन के उपरांत श्रोताओं ने जीवन, ध्यान और अध्यात्म से जुड़े अनेक प्रश्न पूछे, जिनके स्वामी जी ने अत्यंत सहजता से उत्तर दिए। इसके पश्चात् एक सामूहिक ध्यान सत्र हुआ, जिसमें उपस्थित सभी साधक गहरे मौन और आनंद में डूब गए। कार्यक्रम का वातावरण ध्यान, प्रेम और ऊर्जा से भर उठा। कार्यक्रम के सफल आयोजन पर सभी आयोजक साथियों को स्वामी जी ने बधाई दी।
कोलकाता में स्वामी जी के कार्यक्रम की आयोजन स्थली, आज सचमुच एक जीवंत ध्यानमंदिर बन गई जहाँ न शब्द रहे, न विचार, केवल शांति, प्रेम और मौन की गूंज रही।
कार्यक्रम के आयोजन टीम मे स्वामी राज कुमार जी के साथ, स्वामी विजय, स्वामी सुभाष दुबे, स्वामी मुकेश, स्वामी जाय, माँ मीरा व स्थानीय अन्य ओशो के संन्यासियों, उनके परिवार के सदस्यों एवं ओशो प्रेमियों का योगदान रहा ।








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