पवन सचदेवा
टेलीग्राम संवाद, सोनीपत।‘कल्पना करें एक ऐसी दुनिया जहाँ एक साधारण 30 मिनट प्रक्रिया माध्यम से अल्ट्रासाउंड शक्ति का उपयोग कर नशे की बेड़ियों से मुक्त होना संभव हो सके। वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी रॉकफेलर न्यूरोसाइंस इंस्टीट्यूट (आरएनआई) शोधकर्ताओं की एक टीम इस दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने के प्रयास में जुटी है। ओशो फ्रेगरेंस आश्रम, सोनीपत में स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने विशेष वार्ता में पवन सचदेवा से कहा बताया कि अल्ट्रासाउंड तरंगों से मस्तिष्क पर असर डालना विशेषज्ञ एक हेलमेट-जैसे उपकरण पर काम कर रहे हैं, जो उच्च आवृत्ति अल्ट्रासाउंड तरंगों का उपयोग करता है। इसका मुख्य लक्ष्य है मानव मस्तिष्क के गहरे हिस्से में स्थित न्यूक्लियस एक्यूम्बॅस’ नामक क्षेत्र जो कि पुरस्कार और प्रेरणा देने के लिए जिम्मेदार है, और नशे की लत से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है।
नया उपचार न्यूक्लियस एक्यूम्बॅस की कोशिका झिल्ली को कंपन में लाकर, उस इनाम प्रणाली’ को बाधित करने का उद्देश्य रखता है, जो सभी प्रकार के नशेड़ियों में पाई जाती है। यह अभिनव अल्ट्रासाउंड तकनीक हाल ही में एक स्वयंसेवी पर आजमाई गई, जो दो दशकों से अधिक समय से हेरोइन और मेथाम्फेटामाइन की लत से जकड़ा हुआ था।
प्रक्रिया के दौरान, प्रतिभागी को हेरोइन की छवियों के सामने रखा गया, जबकि उसका मस्तिष्क अल्ट्रासाउंड तरंगों से घिरा हुआ था। प्रक्रिया के बाद, स्वयंसेवी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि उसका नशे के प्रति आकर्षण समाप्त हो गया था और उसे उन पदार्थों के प्रति अब कुछ भी रुचिकर महसूस नहीं हो रहा था।
हालाँकि शोधकर्ता इस बात को मानते हैं नशे की लत के मूल कारणों का निवारण करना जैसे कि तनाव और भावनात्मक आघात को उचित तरीकों से संबोधित करना आवश्यक है।
‘अगर आप नशे की इच्छा को हटा देते हैं, लेकिन तनाव और अन्य कारों को नहीं हटाते, तो अंततः व्यक्ति फिर से उसी स्थिति में पहुँच जाएगा ऐसा डॉ. जेम्स माहोनी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया। प्रारंभिक परिणाम और अब तक की प्रगति बहुत ही उत्साहजनक रही है, जिससे नशा उपचार पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की संभावना नजर आती है। यह प्रक्रिया अन्य दो मरीजों पर भी आजमाई गई और परिणाम सफल रहे। भविष्य में वेल कॉर्नेल मेडिसिन और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के साथ मिलकर और परीक्षण किए जाने की योजना है।नशे के खिलाफ लड़ाई में एक नई उम्मीद जागी है। दुनिया नशे के कठोर प्रभावों से जूझ रही है, जहाँ हर साल नशे की वजह से एक लाख से अधिक मौतें होती हैं। अनुमानित 27 लाख लोग, जिनकी उम्र 12 वर्ष या उससे अधिक है, अफ़ीम की लत में फंसे हैं। लगभग 3 करोड़ अमेरिकी शराब का दुरुपयोग कर रहे हैं। वर्तमान उपचार विधियों केवल कुछ हद तक प्रभावी होती है, क्योंकि वे मुख्य रूप से उन दवाओं पर आधारित होती हैं जो अफीम या शराब के उपयोग से जुड़े उत्साही भावों को दबाती हैं। किंतु इस नूतन प्रक्रिया की क्षमता अपार है। मस्तिष्क के उन हिस्सों को लक्षित करके जो नशे के लिए जिम्मेदार होते हैं, यह नया तरीका भविष्य में नशे के इलाज को अधिक प्रभावी और सक्षम बना सकता है।
सामूहिक प्रयासों से यह आशा है कि जल्द ही लाखों लोग इस नशे के चक्र से मुक्ति पा सकेंगे। जैसे-जैसे आर. एन.आई. की टीम अल्ट्रासाउंड थेरेपी के प्रभावों का अध्ययन कर रही है, उनका ध्यान नशे से जूझ रहे लोगों की जटिल आवश्यकताओं के अनुसार एक समाधान तैयार करने पर है। पारंपरिक तरीके जो अक्सर इच्छाओं को दबाने के लिए दवाओं पर निर्भर करते हैं, सभी के लिए प्रभावी नहीं होते।
कई लोग स्थायी राहत पाने के लिए संघर्ष करते हैं क्योंकि ये उपचार केवल लक्षणों को संबोधित करते हैं, न कि मस्तिष्क के उन प्रमुख मार्गों को जो नशे में संलग्न होने की वजह हैं। अल्ट्रासाउंड थेरेपी के माध्यम से, शोधकर्ता उसे बदलने का प्रयास कर रहे हैं। उच्च आवृति की तरंगों द्वारा न्यूक्लियस एक्यूम्बॅस पर प्रभाव डालकर, मस्तिष्क इनाम प्रणाली बाधित करना है। जहाँ इच्छाएँ सुदृढ़ होती हैं। इस भौतिक दृष्टिकोण से मरीजों को यह अनुभव होता है कि उनके मस्तिष्क के नशे के ट्रिगर के प्रति प्रतिक्रिया में तत्काल बदलाव आया है।
उद्देश्य केवल इच्छाओं को दबाना नहीं है, बल्कि एक ऐसा आधार प्रदान करना है जो पुनर्प्राप्ति को प्रबंधनीय महसूस कराए। विशेषज्ञ आगे के परीक्षणों हेतु आशावान हैं कि अल्ट्रासाउंड थेरेपी एक गेम चेंजर साबित हो सकती है। व्यक्तिगत मुकाबला करने की रणनीतियों के साथ जोड़कर, अल्ट्रासाउंड उपचार लोगों को अपने जीवन पर पुनः नियंत्रण पाने और नशे से मुक्त भविष्य की ओर देखने की शक्ति दे सकता है।
ओशो के अनुसार, नशे का सहारा लेकर व्यक्ति केवल अपने गम को भुलाता है, उसे अस्थायी रूप से छुपाता है। नशे में व्यक्ति को लगता है कि उसकी परेशानियों और दर्द उससे दूर हो गए हैं, लेकिन यह केवल एक क्षणिक भ्रम होता है। नशा न तो दर्द को समाप्त करता है और न ही वास्तविक समाधान प्रदान करता है। दूसरी ओर, ध्यान व्यक्ति को गम से मुक्त करने का सच्चा मार्ग है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी समस्याओं का गहराई से सामना कर सकता है और उनके पीछे छिपे सत्य को समझ सकता है। इस प्रक्रिया में वह अपने भीतर की शांति और आनंद को पा सकता है।ओशो का मानना है कि एक आनंदित और जागरुक व्यक्ति अपनी चेतना को खोना नहीं चाहता, बल्कि जीवन को पूरी समग्रता से जीना चाहता है। ऐसा व्यक्ति अपने अस्तित्व से संतुष्ट होता है और इसलिए कभी नशे की ओर आकर्षित नहीं होता। इसके विपरीत, दुखी इंसान अपने दुःखों से भागना चाहता है, वह स्वयं को भूल जाना चाहता है। ओशो के अनुसार, नशामुक्ति के लिए ध्यान का अभ्यास ही सही उपाय है, क्योंकि यह व्यक्ति को भीतर की ओर ले जाकर स्थायी शांति और संतोष प्रदान करता है।
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जो कि खुद एक स्वर्ण पदक प्राप्त डॉक्टर हैं, कहते हैं कि मेडिटेशन का प्रभाव, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले वैक्सीनेशन जैसा है, प्रिभेंशन में उपयोगी है। किंतु रोगग्रस्त व्यक्ति के लिए काम का नहीं है, उसे अस्थायी रूप से छुटकारा दिलाने के लिए इलाज की जरूरत होगी। जिस प्रकार टायफाइड हो जाने पर बैक्टीरिया मारने वाले एंटी-बायोटिक की आवश्यकता है, लेकिन स्वस्थ व्यक्ति को टायफाइड से बचाने के लिए वैक्सीन का टीका प्रभावी होता है।