ओशो फ्रेग्रेंस आश्रम में स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जी से टेलीग्राम संवाद के विशेष प्रतिनिधि पवन सचदेवा की हुई खास बातचीत के कुछ अंश……

पवन सचदेवा

टेलीग्राम संवाद, सोनीपत। कुमाशपुर, दीपलपुर रोड स्थित ओशो फ्रेग्रेंस आश्रम मे स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जी से विशेष प्रतिनिधि टेलीग्राम संवाद पवन सचदेवा से खास बातचीत हुई…

स्वामी जी बताया जाता है की ओशो ने अपने अमरीका प्रवास के दोरान रजनीशपुरम, ओरगंन मे एक पूरा राज्य स्थापित करा था, आपसे अनुरोध है की कृपया विस्तार से बताये की इसकी बुनियाद किन सिद्धांतों पर रखी गई थी ?

1) स्वतंत्रता और स्वाभाविकता का सम्मान:

रजनीशपुरम में लोग बिना किसी बाहरी दबाव या पारंपरिक समाज के बंधनों के, अपनी मर्जी के अनुसार जीने के लिए प्रोत्साहित थे। यह एक ऐसा वातावरण था जहाँ लोग खुद के प्रति सच्चे रह सकते थे और अपनी स्वतंत्रता को महत्व दे सकते थे।

2) ध्यान और आंतरिक शांति का मार्ग:

ओशो ने ध्यान की विभिन्न तकनीकों को प्रोत्साहित किया, जो लोगों को आत्मनिरीक्षण करने और अपने आंतरिक शांति का अनुभव करने में मदद करती थीं। ये तकनीकें मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ को बढ़ावा देती थीं, जो आज भी लोकप्रिय हैं।

3) सामुदायिक जीवन और सहयोग:

रजनीशपुरम का प्रमुख उद्देश्य एक ऐसा समुदाय बनाना था जहाँ लोग एक दूसरे के साथ सहयोग करके जीवन के हर पहलू में एकता और भाईचारे का अनुभव कर सकें। यहाँ सभी एक-दूसरे की मदद करते थे और मिलकर काम करते थे, जो सहयोग और समुदायिकता का उदाहरण प्रस्तुत करता है।

4) व्यक्तिगत विकास और सृजनशीलता:

इस समुदाय में विभिन्न कलाओं जैसे नृत्य, संगीत, पेंटिंग, और अन्य सृजनशील गतिविधियों को प्रोत्साहित किया गया। यहाँ लोग अपनी कल्पनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकते थे और अपने व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे।

5) वैकल्पिक जीवन शैली का प्रयोग:

रजनीशपुरम एक प्रयोगशाला की तरह था, जहाँ लोगों ने परंपरागत समाज के बाहर जाकर एक नया जीवन शैली अपनाने का प्रयास किया। उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि अलग तरीके से भी एक संतुलित, स्वस्थ और प्रेरणादायक जीवन जीया जा सकता है।

6) साझा संसाधन:

रजनीशपुरम, एक ऐसा अनोखा और संपन्न समुदाय था जिसमें दुनिया भर के प्रतिभाशाली, धनी और दानी लोग निवास करते थे। यह समुदाय एक नए प्रकार का समाज स्थापित करने की कोशिश कर रहा था, जिसमें सभी लोग सहयोग, साझा संसाधन, और सामूहिक विकास में विश्वास करते थे। इस प्रयास ने साम्यवाद के एक विकसित रूप को प्रस्तुत किया, जहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिकता का अद्भुत मेल था।

7) अर्थ के बिना, जीवन का अर्थ:

रजनीशपुरम में अधिकांश लोग वे थे, जो समाज की पारंपरिक सीमाओं से परे जाकर जीवन का अर्थ खोजना चाहते थे। यहाँ बड़ी संख्या में कुशल लोग थे—कला, साहित्य, चिकित्सा, और विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले—जो ओशो के विचारों और ध्यान तकनीकों से प्रभावित होकर वहाँ आए थे। इसके अलावा, कई धनी और दानी लोगों ने भी समुदाय का हिस्सा बनकर इसे आर्थिक रूप से सहयोग दिया। उनकी धनराशि और संसाधन न केवल इस समुदाय के विकास में सहायक बने, बल्कि इसने यह भी दिखाया कि कैसे अलग-अलग आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोग एक साथ रह सकते हैं, बिना किसी असमानता या भेदभाव के। इस शहर के लोगों में आपसी धन-पैसे का लेनदेन नहीं होता था। किसी को सैलरी नहीं मिलती थी। कुछ खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती थी। सबकी आवश्यकताओं का ख्याल संस्था की तरफ से रखा जाता था।

8) साम्यवाद का एक विकसित रूप:

रजनीशपुरम में देखने को मिला, जो पारंपरिक साम्यवाद से अलग था। यह केवल आर्थिक समानता तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें व्यक्तिगत और सामूहिक स्वतंत्रता का एक संतुलित समावेश था। इस तरह, वहाँ व्यक्तिगत संपत्ति की अवधारणा सीमित थी और अधिकतर संसाधन सामूहिक रूप से उपयोग किए जाते थे। सभी निवासियों ने सामूहिक रूप से कार्य किया, जिससे समुदाय के सभी कार्य—खेती, निर्माण, सफाई—मिल-जुलकर और समान भाव से पूरे होते थे।

9) श्रेणीकरण नहीं:

इस सामुदायिक जीवन में कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं माना जाता था; हर व्यक्ति अपनी भूमिका निभाता और दूसरों की मदद करता था। प्रतिभा और दक्षता के अनुसार कार्यों का बंटवारा किया जाता था, लेकिन इनमें कोई श्रेणीकरण नहीं था। इससे समाज में समरसता का वातावरण बना और लोगों को अपनी स्वयं की रचनात्मकता को व्यक्त करने का भरपूर मौका मिला।

10) सामूहिक कल्याण:

रजनीशपुरम की साम्यवादी व्यवस्था में हर व्यक्ति की मूल आवश्यकताओं का ख्याल रखा जाता था। स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, और अन्य बुनियादी सुविधाएं सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध थीं। यहाँ व्यक्तिगत लाभ की बजाय सामूहिक कल्याण पर जोर दिया जाता था, और आर्थिक भेदभाव के स्थान पर सहयोग और सामूहिकता का महत्व था। इसने एक ऐसा समाज बनाया जहाँ लोग बिना किसी निजी स्वार्थ के एक-दूसरे के लिए कार्य करते थे, और व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ सामूहिक प्रगति का आदान-प्रदान करते थे।

11) झोरबा दि बुद्ध का समन्वय:

पूरब और पश्चिम का मिलन। विज्ञान और आत्मज्ञान का संगम। महावीर और मार्क्स का सपना एक साथ पूरा हुआ। इस साम्यवादी दर्शन का सार यही था कि यहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का स्थान बना रहे, परंतु सामूहिकता भी मजबूती से कायम रहे। रजनीशपुरम में इस तरह के सामुदायिक ढांचे ने दिखाया कि कैसे विभिन्न पृष्ठभूमि और आर्थिक स्थितियों वाले लोग एक साथ रह सकते हैं, साझा कर सकते हैं, और समानता का अनुभव कर सकते हैं।

रजनीशपुरम का दर्शन आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणादायक है, खासकर जो पारंपरिक जीवन शैली से अलग कुछ करना चाहते हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, ध्यान, और समुदाय के बीच संतुलन बनाकर जीवन में नई ऊंचाइयों को छूना संभव है। यह एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करता है जो दिखाता है कि कैसे साम्यवाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संतुलित और समृद्ध मिश्रण एक सकारात्मक और प्रेरणादायक समाज का निर्माण कर सकता है।

शायद निकट भविष्य में मनुष्य को सुख-शांति और प्रेम-मित्रतापूर्ण जीवन जीने के लिए ऐसे समाज का निर्माण पुनः बड़े पैमाने पर हो।

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