विश्व में प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं

रिद्धिमा बरेली में चतुर्थ थिएटर फेस्टिवल इंद्रधनुष नाटक अतः स्मरण से शुरू

एसपी सिटी मानुष पारीख और महंत नीरज नयन दास ने किया दीप प्रज्वलन

राधा कृष्ण संवाद सुनकर भाव विभोर हुए दर्शक

विशेष प्रतिनिधि
टेलीग्राम संवाद, बरेली। एसआरएमएस रिद्धिमा प्रेक्षागृह में रविवार शाम से रिद्धिमा बरेली में चतुर्थ थिएटर फेस्टिवल इंद्रधनुष शुरू हो गया। सप्ताह पर चलने वाला महोत्सव में पहले दिन अतः स्मरण नामक नाटक से सशक्त शुरुआत हुई।

पहले दिन खचाखच भरे प्रेक्षागृह में दर्शकों के सामने इंद्रधनुष 2024- चतुर्थ रंग महोत्सव इंद्रधनुष आरंभ हुआ। एसपी सिटी मानुष पारीख और तुलसी मठ महंत नीरज नयन दास, एसआरएमएस ट्रस्ट संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति, सचिव आदित्य मूर्ति, सुभाष मेहरा, डा. एमएस बुटोला, डा. प्रभाकर गुप्ता, डा.रीता शर्मा ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम शुरू किया। थिएटर फेस्टिवल स्मारिका का भी विमोचन हुआ।


अश्वनी कुमार लिखित और विनायक श्रीवास्तव निर्देशित नाटक “अन्तः स्मरण” में महाभारत युद्ध बाद की परिस्थितियों को दिखाया गया। जिसमें गांधारी महाभारत युद्ध का जिम्मेदार कृष्ण को ठहराती हैं और कृष्ण के सामने ही उसका पूरा वंश समाप्त होने श्राप देती हैं। कृष्ण श्राप को स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन विचलित कृष्ण खुद को अकेला महसूस करते हैं। इसी समय कृष्ण का प्रतिबिम्ब कृष्ण को समझाता है कि वो अकेले नहीं हैं। उसके साथ तो पूरा बृज है। यशोदा मैया है, बाल सखा हैं और उनके साथ राधा भी हैं। उसका प्रेम है। यहीं से कहानी फ्लैशबैक में जाती है और बाल कृष्ण माखन चोरी कर मइया यशोदा को परेशान करते हैं।

यशोदा माखन चोरी से परेशान करने पर कृष्ण को ओखल में बांध देती हैं। वहीं पर बाल राधा भी आती और कान्हा से पूछती हैं उसको क्यों बांधा है? बड़े होने के बाद राधा कृष्ण मिलते हैं और होली पर राधा कृष्ण गोपियों संग होली खेलते हैं और नृत्य करते हैं। कृष्ण राधा को बताते है कि दोनों एक दूसरे से निस्वार्थ प्रेम करते हैं। इसी प्रेम के कारण संसार में तुम्हारा नाम मुझसे पहले लिया जायेगा। इसलिए राधा का नाम हमेशा कृष्ण से पहले आता है राधा- कृष्ण। राधा ने कृष्ण से कहती है कृष्ण तुम हमेशा मेरे प्रेम की परीक्षा लेने उद्धव को भेजते हो। उद्धव अहंकार लेकर आये थे और मैंने भी उद्धव को प्रेम की परिभाषा बहुत ही विद्वता से समझाई है। उद्धव प्रेममय होकर वापस चले गए।


उद्धव को भी एहसास होता है कि दोनों का प्रेम निस्वार्थ है। अंत में महाभारत युद्ध बाद कृष्ण राधा से मिलते हैं। दोनों भाव विभोर होकर एक दूसरे को देखते हैं। राधा कृष्ण से कहती है कान्हा हमारा प्रेम किसी फल का मोहताज नहीं है। राधा और कृष्ण कहते है प्रेम निर्मल और एक दूसरे के लिए प्रेरणा श्रोत है।

नाटक में ईशान रस्तोगी (कृष्ण), गौरव कार्की (कृष्ण प्रतिबिम्ब), चेष्ठा मौर्या (राधा), क्षमा शुक्ला (गांधारी), अनमोल मिश्रा (यशोदा), गौरिका मिश्रा (बाल कृष्ण), फातिमा (बाल राधा), जयदेव पटेल (उद्धव) ने बेहतरीन अभिनय किया। संजय सक्सेना ने सूत्रधार के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। भजन मंडली में मनोज शर्मा, पंकज कुकरेती, रविंदर उपाध्याय, अंजू शर्मा, सुमन बिश्वास शामिल रहे। नाटक में संगीत संयोजन संजय सक्सेना और विनायक श्रीवास्तव का रहा। जिसमें तबले पर सुमन विश्वास, बांसुरी पर सूरज पांडेय से साथ संगत दी। इस मौके पर आशा मूर्ति, ऋचा मूर्ति, उषा गुप्ता, गिरिधर खंडेलवाल, डा. अनुज कुमार, डा. जसप्रीत कौर, डा. रीता शर्मा और तमाम दर्शक मौजूद रहे

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