ओशो आत्म-स्मरण साधना शिविर का समापन

साधारण जीवन ही कर्मयोग कैसे बने

पवन सचदेवा

टेलीग्राम संवाद, सोनीपत। श्री रजनीश ध्यान मंदिर, दीपालपुर में पिछले 6 दिनों से चल रहे आत्म-स्मरण साधना शिविर संपन्न हुआ। करीब 90 साधक-साधिकाओं ने इसमें लगनपूर्वक भाग लिया। समापन सत्र में मा अमृत प्रिया जी ने शिविर का सार-संक्षेप इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रस्तुत किया– साधारण जीवन ही कर्मयोग कैसे बने? इस सवाल का जवाब एक गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक विमर्श का हिस्सा है, जिसमें विभिन्न दृष्टिकोणों से मुख्य 5 बिंदुओं पर जीवन, कर्म, और ध्यान का विचार किया जाना चाहिए–

1. कबीरः घूंघट के पट खोलना


कबीर के “घूंघट के पट खोल“ का मतलब है अज्ञानता के पर्दे को हटाना। यहाँ “घूंघट“ को तीन प्रकार की व्यस्तताओं से समझाया गया हैः

1 शारीरिक व्यस्तताः भौतिक संसार में उलझन, दैनिक जीवन के कर्म और जिम्मेदारियाँ।

2 मानसिक व्यस्तताः विचारों, चिंताओं और मानसिक द्वंद्वों से उत्पन्न तनाव।

3 हार्दिक व्यस्तताः भावनात्मक जुड़ाव, इच्छाएं, तृष्णाएं, कल्पनाएं आदि।
कबीर का संदेश है कि इन व्यस्तताओं से मुक्त होकर अपने भीतर के सत्य को देखो। यह आंतरिक जागरूकता का आह्वान है। हालाँकि, इस दुनिया में पूर्ण मुक्ति या अव्यस्तता असंभव है, लेकिन थोड़ी देर के लिए भी ध्यान और आत्मचिंतन द्वारा इन व्यस्तताओं से परे जाया जा सकता है।

2. कर्म से मुक्ति की असंभवता


यह तथ्य कि कर्म से पूर्ण मुक्ति असंभव है, जीवन के मौलिक सत्य को दर्शाता है। चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिक, सभी ने किसी न किसी रूप में कर्म से छुटकारा पाने की कोशिश कीः
धार्मिक लोगः उन्होंने संसार का त्याग किया, आश्रमों और पहाड़ों में जाकर, संसार से भागने की कोशिश की। बुद्ध और महावीर ने अपने अनुयायियों को आजीविका उपार्जन छोड़कर भिक्षाटन की शिक्षा दी, ताकि वे अधिकाधिक समय ध्यान में व्यतीत कर सकें। किंतु यह शिक्षा बड़े पैमाने पर लागू नहीं की जा सकती, यानी जगत के लिए व्यावहारिक नहीं है।
वैज्ञानिकः उन्होंने यंत्रों का आविष्कार करके जीवन को आसान बनाने और प्रकृति पर विजय पाने का प्रयास किया, ताकि वे कर्म से मुक्ति पा सकें।
परंतु, कोई भी कर्म से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकता। यह जीवन की अनिवार्यता है कि हमें कुछ न कुछ करते रहना होगा। जीवन ऊर्जा कुछ तो करेगी। यदि सार्थक कार्य नहीं करेगी तो कुछ व्यर्थ के उपद्रव खड़े करेगी।

3. कृष्णः फलासक्ति रहित कर्म


श्रीकृष्ण ने गीता में निष्काम कर्म का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने कहा कि कर्म करते रहो, लेकिन फल की आसक्ति मत रखो। यह सच्चा संन्यास है–कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फल की इच्छा का त्याग। इसका अर्थ है कि कर्म करते समय हम अपनी इच्छाओं, स्वार्थों और अपेक्षाओं को त्याग दें। यह कर्मयोग का आदर्श है, जहाँ जीवन के हर कार्य को एक साधना के रूप में देखा जाता है।

4. ओशोः आनंद और आत्म-स्मरण के साथ कर्म


ओशो का दृष्टिकोण है कि जीवन के हर कर्म को आनंद और जागरूकता के साथ किया जाए। उनका मानना है कि कर्म गौण है, भीतर की भावदशा अधिक महत्वपूर्ण है।
ओशो की कथा में तीन मजदूरों का उदाहरण दिया जाता है, जो पत्थर तोड़ रहे हैंः पहला दुखी एवं क्रोधित मजदूर पत्थर तोड़ने के काम को मजबूरी, अत्यधिक कठिन और कष्टप्रद मानता है। दूसरा उदास व्यक्ति इसे मजदूरी मानता है कि वह परिवार के लिए आजीविका कमा रहा है, बच्चों का पालन-पोषण कर रहा है। तीसरा प्रसन्न गीत गाता हुआ मजदूर समझता है कि वह प्रभु के एक मंदिर का निर्माण कर रहा है, और उसे अपने काम में आनंद और पवित्रता महसूस होती है।
इस कथा से ओशो यह समझाते हैं कि कर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम किस भावदशा के साथ कर्म कर रहे हैं। जब हर कर्म को आनंदपूर्वक और पूरी जागरूकता के साथ किया जाता है, तब वही कर्म साधना बन जाता है। ओशो की अनूठी समन्वित दृष्टि में कृष्ण, कबीर, बुद्ध, महावीर, समस्त विपरीत दिखने वाले नजरियों का सामंजस्य हो जाता है। आधुनिक युग में यही व्यावहारिक रूप से उपयोगी है।

5. निष्कर्षः अस्तित्व का समान वितरण


इस पूरे विमर्श का मुख्य सार यह है कि कर्म से मुक्ति संभव नहीं है, लेकिन कर्म को किस प्रकार से किया जाए, इसका दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। कबीर, कृष्ण, और ओशो सभी ने अपने-अपने तरीकों से यही कहा है कि जीवन का रहस्य कर्म के प्रति हमारी दृष्टि और भावदशा में छिपा है। कर्म को त्यागने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उसे जागरूकता, आनंद और बिना आसक्ति के करना सच्चा अध्यात्म है। हां, कभी-कभार थोड़ी देर के लिए हम अव्यस्त दशा में समाधिस्थ हो सकते हैं। इस प्रकार भीतर और बाहर का, धन और ध्यान का, संसार का और संन्यास का संतुलन सध जाएगा।

अमृत प्रिया जी ने एक सुंदर रूपक से समझाया कि अस्तित्व ने हम सभी को एक जैसा उपकरण (तेल, दीपक, बाती, माचिस) दिया है। यह दर्शाता है कि हर इंसान के पास एक समान क्षमता और साधन होते हैं, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इन साधनों का उपयोग कैसे करते हैंः कुछ लोग इनका सही संयोजन कर अपने जीवन को प्रकाशित कर लेते हैं, वे जीवन के अर्थ को समझते हैं और जागरूकता में जीते हैं। अधिकांश लोग अज्ञानता के अंधेरे में जीते रहते हैं, और अपने साधनों का सही उपयोग नहीं कर पाते। कुछ लोग इतने अव्यवस्थित होते हैं कि वे आग जलाकर स्वयं का और अन्य लोगों का भी नुकसान कर लेते हैं, यानी जीवन में दुख और कष्ट पैदा कर लेते हैं।

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