12 वर्ष के बाद वृषभ राशि में होगा गुरु -आदित्य योग का निर्माण
14 मई से 14 जून तक वृषभ राशि में ही करेंगे गोचर
राशि परिवर्तन से होगा सभी 12 राशियों पर असर
ज्योतिषाचार्य मुकेश मिश्रा
टेलीग्रामसंवाद, बरेली। सभी ग्रहों को ऊर्जा देने वाले ग्रहों के राजा भुवन भास्कर सूर्य देव 14 मई मंगलवार को मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में शाम 5:52 पर गोचर करने जा रहे हैं। सबसे खास बात तो यह है की सूर्य देव वृद्धि योग मे राशि परिवर्तन करेंगे जो कि, बहुत ही शुभ माना जा रहा है।बता दें, 14 जून तक इसी राशि में विचरण करेंगे। सूर्य राशि परिवर्तन को संक्रांति काल कहा जाता है। जिसका महत्व पूजा- पाठ,दान-पुण्य करने के लिए विशेष माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य मुकेश मिश्रा
ज्योतिष के अनुसार वैसे तो सूर्य देव एक राशि में एक महीने तक विचरण करते हैं। वृषभ राशि में 1 वर्ष के बाद लौट रहे हैं। सबसे खास बात तो यह है की वृषभ राशि में बृहस्पति ग्रह भीकुछ दिन पहले आए हैं। ऐसे में सूर्य और गुरु का एक साथ आना बेहद शुभ फलदाई माना गया है। इन दोनों को एक साथ एक राशि में आने से गुरु आदित्य योग का निर्माण होगा। बता दें वृषभ राशि में गुरु आदित्य योग का निर्माण 12 वर्ष बाद हो रहा है। जिसका शुभ अशुभ प्रभाव मेष राशि से लेकर मीन राशि तक होगा। धर्म शास्त्रों के अनुसार कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति शुभ होने पर जातक में ऊर्जा, आत्मविश्वास भरपूर होता है और हर कार्य में अपार सफलता मिलती है। वही, देवगुरु बृहस्पति धन, ज्ञान, मान -सम्मान,सुखी -वैवाहिक जीवन और सुख -समृद्धि के दाता माने गए हैं। मान्यता है कि सूर्य- गुरु की युति के प्रभाव से आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। व्यक्ति को गुण, ज्ञान की प्राप्ति होगी। हर कार्य में शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। यानी गुरु और सूर्य देव की कृपा से कैरियर में तरक्की के अन्य अवसर मिलेंगे। भौतिक जीवन में निखार आएगा। स्वास्थ्य लाभ भी मिल सकता है।
वेदों और पुराणों में सूर्य का महत्व
वैदिक काल से भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा और ईश्वर का नेत्र बताया गया है। सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं। सूर्यदेव की कृपा से ही पृथ्वी पर जीवन बरकरार है। ऋषि-मुनियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्य की साधना-आराधना को अत्यंत कल्याणकारी बताया है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। जिनकी साधना स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी। विदित हो कि प्रभु श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग दूर कर पाए थे।
सूर्य की साधना का ज्योतिष में महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्यदेव की साधना से अक्षय फल मिलता है। भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार सूर्य को नवग्रहों में प्रथम ग्रह और पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया है। जीवन से जुड़े तमाम दुखों और रोग आदि को दूर करने के साथ-साथ जिन्हें संतान नहीं होती उन्हें सूर्य साधना से लाभ होता हैं। पिता-पुत्र के संबंधों में विशेष लाभ के लिए सूर्य साधना पुत्र को करनी चाहिए।
सभी राशियों पर यह होगा प्रभाव
- मेष : मान-सम्मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी, किंतु धनाभाव हो सकता है, कुछ काम आपके अटक भी सकते हैं।
- वृषभ : शारीरिक स्वस्थता प्राप्त होगी, धन में वृद्धि होगी, दांपत्य जीवन में टकराव, प्रेम में विरोध हो सकता है।
- मिथुन : बारहवां सूर्य खर्च अधिक करवाएगा, पारिवारिक सुखों पर खर्च होगा, नेत्र रोग परेशान करेंगे।
- कर्क : एकादश का सूर्य प्रतिष्ठा दिलवाएगा, मांगलिक कार्य होंगे, धनतंगी बनी रहेगी, नौकरी में बदलाव होगा।
- सिंह : करियर में उठाव आएगा, नए अवसर मिलेंगे, आर्थिक तंगी दूर होगी, समाज में प्रतिष्ठा-सम्मान बढ़ेगा।
- कन्या : भाग्य प्रबल होगा, नए अवसर आएंगे, नौकरी में प्रमोशन, व्यापार में लाभ होगा, धर्म में रुचि बढ़ेगी।
- तुला : स्वास्थ्य गड़बड़ा सकता है, मानसिक कष्ट आएगा, धन की कमी होगी, परिवार में विवाद हो सकता है।
- वृश्चिक : दांपत्य जीवन पर सीधा असर पड़ेगा, विवादित स्थिति बन सकती है, स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा।
- धनु : रोग और शत्रु परास्त होंगे, धन का आगमन होगा, नए कार्य मिलेंगे, व्यापार में नए अनुबंध हो सकते हैं।
- मकर : प्रेम, शिक्षा और संतान से जुड़े कार्यों में लाभ होगा, निवेश से लाभ अर्जित होगा, स्वास्थ्य में सुधार होगा।
- कुंभ : सुखों में वृद्धि होगी, संपत्ति खरीदने के योग हैं किंतु पारिवारिक और दांपत्य जीवन के लिए ठीक नहीं रहेगा।
- मीन : भाई-बहनों से संबंध सुधरेंगे, समाज में प्रतिष्ठा मिलेगी, नौकरी में लाभ, नए व्यापारिक अनुबंध करेंगे।
सूर्य पूजा विधि
सूर्य की साधना-उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।